पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जिनका हाल ही में 92 वर्ष की आयु में निधन हुआ, एक ऐसा नाम है जो आधुनिक भारत के आर्थिक और राजनीतिक विकास की कहानी का अहम हिस्सा है। उनकी विनम्रता, दूरदृष्टि, और काम के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें देश के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बना दिया। उनके कार्यकाल को समझने और उनके योगदान का मूल्यांकन करने का आज सही समय है।
इतिहास उनके प्रति दयालु होगा
मनमोहन सिंह ने एक बार कहा था, “इतिहास मेरे काम के प्रति अधिक दयालु होगा।” यह बयान उस समय के मीडिया और विपक्षी दलों के उनके प्रति आलोचनात्मक रवैये को संबोधित करता था। आज, जब देश में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियां स्पष्ट रूप से दिख रही हैं, उनके शब्द सच साबित हो रहे हैं। 2014 से पहले का भारत एक नई ऊंचाई को छूने के लिए तत्पर था।
1991: आर्थिक उदारीकरण की नींव
1991 में वित्त मंत्री के रूप में, मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी। आर्थिक उदारीकरण ने भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख स्थान दिलाया। मल्टीनेशनल कंपनियों के आगमन से मध्यम वर्ग का जीवन स्तर बढ़ा, और देश ने विज्ञान, तकनीक और आईटी के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई।
सूचना का अधिकार और लोकपाल
प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने सूचना का अधिकार (RTI) और लोकपाल जैसे ऐतिहासिक कानून दिए। RTI ने आम नागरिकों को सरकार से सवाल पूछने का अधिकार दिया। लोकपाल कानून, हालांकि आज अपनी प्रासंगिकता खो चुका है, उस समय भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत कदम था।
अमेरिकी कांग्रेस में सम्मान
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत की अंतरराष्ट्रीय साख भी बढ़ी। अमेरिकी कांग्रेस में उन्हें दिए गए सम्मान ने यह दर्शाया कि उनका नेतृत्व और दूरदृष्टि केवल भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रशंसित थी।
मीडिया और लोकतंत्र
मनमोहन सिंह के समय में मीडिया और लोकतंत्र के बीच संतुलन था। मीडिया उनके कामों की आलोचना करती थी, और वे हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार रहते थे। यह लोकतांत्रिक पारदर्शिता का एक बेहतरीन उदाहरण था। इसके विपरीत, आज की मीडिया और सरकार के बीच संबंधों में पारदर्शिता का अभाव है।

सांप्रदायिक सौहार्द और सामाजिक ताने-बाने की रक्षा
मनमोहन सिंह ने हमेशा भारत के सांप्रदायिक सौहार्द को मजबूत किया। उन्होंने हर समुदाय के बीच सामंजस्य बनाए रखने की कोशिश की। उनके नेतृत्व में धार्मिक और सामाजिक विवादों का जवाब संयम और समझदारी से दिया गया।
आलोचनाओं के बावजूद निरंतरता
मनमोहन सिंह के कार्यकाल को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी की छाया में काम करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने इसे लोकतंत्र का हिस्सा मानते हुए इसे सकारात्मक रूप में लिया। उनके नेतृत्व ने यह साबित किया कि राजनीतिक दबावों के बावजूद, ईमानदारी और दूरदृष्टि के साथ काम करना संभव है।
आज के संदर्भ में
आज जब हम 2014 के बाद के भारत को देखते हैं, तो स्पष्ट है कि विकास के नाम पर सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ा है। सांप्रदायिकता और नफरत का माहौल समाज में जड़ें जमा चुका है। मनमोहन सिंह की भविष्यवाणी कि नरेंद्र मोदी का नेतृत्व देश के लिए एक “डिजास्टर” साबित हो सकता है, कई मायनों में सच होती दिख रही है।
निष्कर्ष
मनमोहन सिंह ने अपने कार्यों और विचारों से आधुनिक और उदार भारत की नींव रखी। उनके शब्द और उनके काम आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे। इतिहास उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में याद करेगा जिसने आलोचनाओं के बावजूद देश को विकास और प्रगति की राह पर आगे बढ़ाया।